कहीं कुछ टूट गया
हुई चुभन इतनी
सुकून भी खोने लगा
है उदास
नन्हों की बाँहें थामें
डगर लंबी पार की
कठिन वार जीवन में झेले
उनको ही सवारने में
क्षमता से अधिक ही किया
जो भी संभव हो पाया
क्या रह गयी कमीं
उनकी परवरिश में
जो दो शब्द भी
मुंह से ना निकले
तपस्या के बदले में
है आज घरोंदा खाली
जाने क्यूं मन भारी
अहसास नितांत अकेलेपन का
मन को टटोल रहा
है कैसा मोह कैसी माया
चोटिल उसे कर गया |
चोटिल उसे कर गया |