19 जुलाई, 2011
है मौन का अर्थ क्या
15 जुलाई, 2011
वे ही तो हैं
कोरी स्लेट पर ह्रदय की
कई बार लिखा लिख कर मिटाया
पर कुछ ऐसा गहराया
सारी शक्ति व्यर्थ गयी
तब भी न मिट पाया |
कितने ही शब्द कई कथन
होते ही हैं ऐसे
पैंठ जाते गहराई तक
मन से निकल नहीं पाते |
बोलती सत्यता उनकी
राज कई खोल जाती
जताती हर बार कुछ
कर जाती सचेत भी |
कहे गए वे वचन
शर शैया से लगते हैं
पहले तो दुःख ही देते हैं
पर विचारणीय होते हैं |
गैरों की कही बात
शायद सही ना लगे
पर अपनों की सलाह
गलत नहीं होती |
शतरंज की बिछात पर
आगे पीछे चलते मोहरे
कभी शै तो
कभी मात देते मोहरे |
फिर बचने को कहते मोहरे
पर कुछ होते ऐसे
होते सहायक बचाव में
वे ही तो हैं,
जो अपनों की पहचान कराते |
14 जुलाई, 2011
धीरज छूटा जाए
12 जुलाई, 2011
ऐसा क्यूँ होता है
है कारण क्या परेशानी का
उदासी की महरवानी का
गर्मीं में अहसास सर्दी का
गहराती नफरत में छिपे अपनेपन का |
कभी आकलन न किया
जो कुछ हुआ उसे भुला दिया
फिर भी कहीं कुछ खटकता है
मन बेचारा कराहता है |
है कारण क्या
चाहता भी है जानना
पर दूर कहीं उससे
चाहता भी है भागना |
गहरी निराशा
पंख फैलाए आती है
मन आच्छादित कर जाती है
रौशनी की किरण कोइ
दूर तक दिखाई नहीं देती |
सिहरन सी होने लगती है
विश्वास तक
डगमगा जाता
मन आक्रान्त कर जाता |
क्या खोया कितना खोया
यह महत्त्व नहीं रखता
बस एक ही विचार आता है
क्यूँ होता है ऐसा
उसी के साथ हर बार |
आशा
11 जुलाई, 2011
तेरा प्यार
तेरा प्यार दुलार
भूल नहीं पाती
जब पाती नहीं आती
मुझे बेचैन कर जाती |
तेरे प्यार का
कोइ मोल नहीं
तू मेरी माँ है
कोई ओर नहीं |
आज भी
रात के अँधेरे में
जब मुझे डर लगता है
तेरी बाहें याद आती हैं |
कहीं दूर स्वप्न में
ले जाती हैं |
फिर सुनाई देती है
तेरी गाई लोरियाँ
‘आँखें बंद करो ‘कहना
मेरा झूठमूठ उन्हें बंद करना |
सारा डर
भाग जाता है
जाने कब सो जाती हूँ
पता ही नहीं चलता |
आशा
09 जुलाई, 2011
कांटा गुलाब का
08 जुलाई, 2011
आज भी वही बात
तुम भूले वे वादे
जो रोज किया करते थे
बातें अनेक जानते थे
पर अनजान बने रहते थे |
तुम्हारी वादा खिलाफी
अनजान बने रहना
बिना बाट रूठे रहना
बहुत क्रोध दिलाता था |
फिर भी मन के
किसी कौने में
तुम्हारा अस्तित्व
ठहर गया था |
बिना बहस बिना तकरार
बहुत रिक्तता लगती थी
तुमसे बराबरी करने में
कुछ अधिक ही रस आता था |
वह स्नेह और बहस
अंग बन गए थे जीवन के
रिक्तता क्या होती है समझी
जब रास्ते अलग हुए |
बरसों बाद जब मिले
बातें करने की
उलाहना देने की
फिर से हुई इच्छा जाग्रत |
जब तुम कल पर अटके
कसमों वादों में उलझे
तब मैं भी उन झूठे बादों की
याद दिलाना ना भूली |
पर आज भी वही बात
ऐसा मैंने कब कहा था |
यह तो तुम्हारे,
दिमाग का फितूर था |
आशा
06 जुलाई, 2011
ग़म
अपने ग़मों के साथ
कई ग़म और लिये फिराता हूँ
देता हूँ तसल्ली उनको
खुद उन्हीं में डूबा रहता हूँ |
नहीं चाहता छुटकारा उनसे
वे हमराज हैं मेरे
हम सफर हैं जिंदगी के
जाने अनजाने आ ही जाते हैं
स्वप्नों को भी सजाते हैं |
हद तो जब हो जाती है
जाने कब चुपके से
मेरे मन में उतर जाते हैं
मन में बसते जाते हैं |
अब तो बिना इनके
अधूरी लगती है जिंदगी
क्यूँ कि खुशी तो
क्षणिक होती है |
इनका अहसास ही जताता है
दौनों में है अंतर क्या
इन्हीं से सीख पाया है
धबरा कर जीना क्या |
अब जहां कहीं भी जाएँ
बचैनी नहीं होती
क्यूँ कि साथ जीने की
आदत सी हो गयी है |
खुशियों की झलक होती मुश्किल
हैं मन के साथी ग़म
सदा साथ रहते हैं
बहते दरिया से होते हैं |04 जुलाई, 2011
एक अनुभव बौलीवुड का
गहरा प्रभाव था चल चित्रों का मुझ पर
चेहरे पर चमक आ जाती थी आइना देख कर |
चस्का हीरो बनाने का इस तरह हावी हुआ
आगा पीछा कुछ ना देखा मुम्बई का रुख किया |
सुबह हुई आँख खुली खुद को स्टेशन पर पाया
मुंह धोने नल तक पहुंचा कोई बैग उठा कर चल दिया|
ना तो थे पैसे पास में ना ही ठिकाना रहने का
बस देख रहा था सड़क पर आती जाती गाड़ियों को |
अचानक एक गाड़ी रुकी इशारे से पास बुलाया
कहा क्या घर से भाग आए हो, कुछ काम करना चाहते हो |
कुछ करना हो तो मुझ से मिलना ,मैंने जैसे ही सिर हिलाया
स्वीकृति समझ पता बताया, और आगे चल दिया |
वहाँ पहुंच कर देखा मैंने , कोई शूटिग चल रही थी
भीड़ की आवश्यकता थी ,उत्सुकता मेरी भी कम न थी |
मिलते ही कुछ प्रश्न किये ,देखा परखा और शामिल कर लिया
शूटिग समाप्त होते ही ,कुछ रुपए दे चलता किया |
थकान बहुत थी , फुटपाथ पर ही सो गया
था बड़ा अजीब शहर ,वहाँ सोने के पैसे भी मांग लिए |
अब मेरी यही दिनचर्या थी, दिन भर भटकता था
कभी काम मिल जाता था कभी भूखा ही सो जाता था |
चेहरे का नूर उतरने लगा ,नियमित काम न मिल पाया
बॉलिवुड की सच्चाई ,पहचान नहीं पाया |
बापिसी की हिम्मत जुटा नहीं पाया
क्या खोया क्या पाया आकलन ना कर पाया |
अब तक हीरो बनाने का भूत भी पूरा उतर गया था
अपनी भूल समझ गया था ,सपनों से बाहर आ गया था |
एक दिन बड़े भाई आए जबरन घर बापिस लाए
आज अपने परिवार में रहता हूँ छोटी सी नौकरी करता हूँ |
जब भी वे दिन याद आते है ,लगता है मैं कितना गलत था
केवल सपनों में जीता था वास्तविकता से था दूर |
थी वह सबसे बड़ी भूल ,जो आज भी सालती है
चमक दमक की दुनिया की सच्चाई कुछ और होती है |
01 जुलाई, 2011
जहां अपार शान्ति होती है
चंचल चपल धवल धाराएं
मार्ग अपना प्रशस्त किया
आगे बढ़ीं सरिता बनीं |
अलग अलग मार्गों से आईं
मंदाकिनी विलीन हो गयी
अलखनंदा में मिल गयी
नदिया में बिस्तार आया
वह और रमणीय हो गयी |
आसपास हरियाली थी
तेज बहती जल धारा थी
कल कल ध्वनि बहते जल की
खींच रही थी अपनी ओर |
घंटों बैठे उसे निहारते
नयनों में वे दृश्य समेटे
एक चित्र कार बैठा पत्थर पर
उकेरता उन्हें कैनवास पर |
जब दिन ढला शाम हुई
दी दस्तक चाँद ने रात में
चंचल किरणें खेलने लगी
जल धारा के साथ में |
खेलता चन्द्रमा लुका छिपी
पेड़ों से छन कर आती
घरोंदों में होती रौशनी से
था दृश्य ही ऐसा
कि मन की झोली में भर लिया |
अब जब भी मन उचटता है
कहीं दूर जाना चाहता है
आखें बंद करते ही
वे दृश्य उभरने लगते हैं
मन सुकून से भर जाता है |
सच कहा था चित्रकार नें
जहां अपार शान्ति होती है
मानसिक थकान नहीं होती
कुछ नया सर्जन होता है |
आशा
30 जून, 2011
नार बिन चले ना
नार कटवाती दाई ,जन्म होता सुखदाई
मनुष्य जीवन पाया ,यूं व्यर्थ जाए ना |
वह सुन्दरी सुमुखी ,सज सवर चल दी
रीत यहाँ की जाने ना ,चाल सीधी चले ना |
उसकी नागिन जैसी ,बल खाती लंबी वेणी
मुख में बीड़ा दबाना ,बिना हंसे चले ना |
मंद मंद मुस्काना ,ध्यान कहीं भटकाना
गुमराह होती जाना ,मार्ग है अनजाना |
मन में होती अशांति ,तूती बजे ना फिर भी
प्रभु के भजन गाना ,नार बिन चले ना|
आशा
29 जून, 2011
है यही रीत दुनिया की
हरीतिमा वन मंडल की
अपनी ओर खींच रही थी
मौसम की पहली बारिश थी
हल्की सी बूंदाबांदी थी
तन भीगा मन भी सरसा
जब वर्षा में तेजी आई
पत्तों को छू कर बूंदे आईं |
पगडंडी पर पानी था
फिर भी पास एक
सूखा साखा पेड़ खडा था
था पत्ता विहीन
था तना भी बिना छाल का |
उसमें कोई तंत न था
जीवन उसका चुक गया था
कई टहनियाँ काट कर
ईंधन बनाया उन्हें जलाया
जब भी कोई उसे देखता
सब नश्वर है यही सोचता |
पहले जब वह हरा भरा था
कई पक्षी वहाँ आते थे
अपना बसेरा भी बनाते थे
चहकते थे फुदकते थे
मीठे फल उसके खाते थे
जो फल नीचे गिर जाते थे
पशुओं का आहार होते थे |
घनी घनेरी डालियाँ उसकी
छाया देती थीं पथिकों को
था वह बहुत उपयोगी
सभी यही कहते थे |
पर आज वह
ठूंठ हो कर रह गया है
सब ने अनुपयोगी समझ
उसका साथ छोड़ दिया है
है यही रीत दुनिया की
उसे ही सब चाहते हैं
जो आए काम किसी के
उपयोगिता हो भरपूर
तभी मन भाए सभी को |
जैसे ही मृत हो जाए
जो कुछ भी पास था
वह भी लूट लिया जाता है
कुछ अधिकार से
कुछ अनाधिकार चेष्टा कर
अस्तित्व मिटा देते हैं उसका
वह आज तो ठूंठ है
कल शायद वह भी न रहेगा
लुटेरों की कमी नहीं है
उनको खोजना न पड़ेगा |
आशा
26 जून, 2011
इसी तरह जी लेंगे
जब से तेरी तस्वीर सीने से लगाई है
दिल पर अधिकार न रहा
उसकी धडकन कभी धीमीं
तो कभी तेज हो जाती है
तस्वीर कभी रंगीन तो कभी रंग हीन
नजर आती है |
उससे निकली आवाज कभी ताल में
तो कभी बेताल हो जाती है
यह कहीं मेरे अंतर्मन में उठते
विचारों का सैलाव तो नहीं
जो मुझे बहा ले जाता है |
जब भी मैं खुश होता हूँ
उस पर भी खुशी झलकती है
देख कर मेरी उदासी
वह गम के साये में खो जाती है
बहुत उदास नजर आती है |
तू जाने किस अन्धकार में खो गई
पर मन में इस तरह बस गई
जहां भी नजर पडती है
तेरी याद आ जाती है
दिल की धड़कन बढ़ जाती है
यह कहीं मेरा भ्रम तो नहीं
तू जीती जागती
सजीव नजर आती है |
ऐसे ही अगर जीना है
हम यह भी सह लेंगे
कोई गिला शिकवा न करेंगे
किसी सहारे की दरकार नहीं है
बस इसी तरह जी लेंगे |
आशा
यदि चाहत हो कुछ करने की
24 जून, 2011
कैसे तुझे भुलाऊँ
तू यहाँ रहे या वहाँ रहे
जहां चाहे वहाँ रहे
कभी रूठी रहे
या मन जाए
पर बहारों का पर्याय है तू
मीठी यादों का बहाव है तू |
चेहरे की मुस्कराहत
अठखेलियाँ करती अदाएं
अखियों की कोर सजाता काजल
लगा माथे पर प्यारा सा डिठोना
किसी की नजर ना लग जाए |
तेरी नन्हीं बाहों की पकड़
कसती जाती थी
जब भी बादल गरजते थे
दामिनी दमकती थी
वर्षा की पहली फुहार
तुझे भिगोना चाहती था |
आगे पीछे सारे दिन
मेरा पल्ला पकड़
इधर उधर तेरा घूमना
गोदी में आने की जिद करना
राह में हाथ फैला कर रुक जाना
बाहों में आते ही मुस्कराना
जाने कितनी सारी बातें हैं
दिन रात मन में रहती हैं
कैसे उन्हें भुलाऊँ
तू क्या जाने
तू क्या है मेरे लिए |
आशा
22 जून, 2011
विश्वास मन का
मंदिर गए मस्जित गए
और गिरजाघर गए
गुरुद्वारे में मत्था टेका
चादर चढाई मजार पर |
कई मन्नतें मानीं
कुछ इच्छाएं पूरी हुईं
कई अधूरी रह गईं
तब अंतर मन ने कहा
है यह विश्वास मन का
ना कि अंध विश्वास किसी धर्म का
होता वही है
जो है विधान विधि का |
क्या अच्छा और क्या बुरा
,हर व्यक्ति जानता है
फिर भी भटकाव रहता है
सब के मन में |
जान कर भी जानना नहीं चाहता
अनजान बना रहता है
,मन की शान्ति खोजता है
जिसका मन होता स्वच्छ और निर्मल
वह उसके बहुत करीब होता है |
जब आख़िरी दिन होगा
हर बात का हिसाब होगा
सब कर्मों का लेखा जोखा
यहीं दिखाई दे जाएगा |
आशा
21 जून, 2011
ऐसी ही है जिंदगी
कभी लगती पुष्पों की सेज सी
कभी डगर काँटों की
कभी पेंग बढाते झूले सी
ऐसी ही है जिंदगी |
देखते ही देखते
यूं ही गुजर जाती है
कैसे करें भरोसा इस पर
कभी भी साथ छोड़ जाती है |
जो भी इसे समझ पाया
सामंजस्य स्थापित कर पाया
वही अपने हिसाब से
अपने तरीके से जी पाया |
जिसने इसे नहीं समझा
इसका मोल नहीं आंका
इसे भोग नहीं पाया
वह भी तो इससे जुदा हुआ |
किसी ने बेवफा कहा इसे
कुछ ने मुक्ति मार्ग का नाम दिया
जाने कितनों ने इसे उपकार कहा
प्रभु की अनमोल देन समझा |
वह भी ऐसी
जो जन्म के साथ मिली हो
फिर वह बेवफा कैसे हो
जिसमें वफा ही भरी हो |
संगी साथी सब छूट जाते हैं
कभी स्मृतियों में
खोते जाते है
कभी विस्मृत भी हो जाते हैं |
है जिंदगी ऐसा अनुभव
जो दौनों ही पाते हैं
कुछ याद रखते हैं
कई भूल जाते हैं |
आशा
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