14 अप्रैल, 2012

सौगात कुशलता की

गीली मिट्टी घूमता चाक 
आकार देते सुघड हाथ 
आकृतियाँ जन्म लेतीं 
हरबार नया आभास देतीं 
संकेत होता वही 
हाथों की कुशलता का
मनोंभावों की पूर्णता का 
यदि कहीं कमीं रहती 
मानक पर खरी नहीं उतरती 
वह  सहन नहीं होती 
नष्ट करदी जाती 
मिट्टी  मिट्टी में मिल जाती 
ब्रह्मा ने सृष्टि रची होगी 
ऐसे ही किसी चाक पर 
निर्मित हुईं कई कृतियाँ 
भिन्न भिन्न आकार लिए 
हर आकृति कुछ भाव लिए 
समानता होते हुए भी 
स्व का भाव लिए 
है  जाने क्या ऐसी माया 
दिखने में सभी एक जैसे 
फिर भी होते अलग से 
चाक निरंतर चलता रहता 
वही मिट्टी वही रण 
वही बनाने का ढंग 
फिरभी यह विभिन्नता 
लगती सौगात  कुशलता की
मन में उठते भावो की 
उनकी सजीव अभिव्यक्ति की
आशा






09 अप्रैल, 2012

जिंदगी को भरपूर जिया है


मैंने जिंदगी को
कई कोणों से देखा है
हर कोण है विशिष्ट
हर रंग निराला है
होता जीने का अंदाज
गहराई लिए
तो कभी अहसास
केवल सतहीपन का
दे जाता बहुत कुछ
जो होता दूर
हर व्यक्ति की पहुँच से
दीखता उस रस्सी सा
जिस तक पहुँचना नहीं सरल
पर उसी रस्सी पर नट को
बिना सहारे चलते देखा है
मैंने जिंदगी को करीबसे देखा है
यह है वृत्त बहुआयामी
उन सभी आयामों को
महसूस किया है
दी है अपनीप्रतिक्रिया भी
कोसों दूरअतिशयोक्ति से
पास बहुत सत्य के
उसी सत्य को आकार दे
प्यार में डूबे देखा है
जिंदगी जीने की कला
सीखने की चाहत को
संबल मिलते देखा है
जिंदगी को जिया है
भोगा है महसूस किया है
हर कोण की छुअन को
उन अनुभूतियों को
यादों में समेटा है
मैंने जिंदगी को भरपूर जिया है |
आशा


08 अप्रैल, 2012

पुस्तक समीक्षा "अनकहा सच "

डा.राम सिंह यादव द्वारा लिखी गयी :-
प्रेम  चिंतन और सकारात्मक सोच की छन्द मुक्त भेट -अनकहा सच
व्यक्तित्व के ना ना रूपों के कारण अभिव्यक्ति भी अलग अलग होती है |सहृदय व्यक्तित्व शब्द रूपी कूची से अनुभूति को उकेरता चला जाता है यह अभिव्यक्ति उसकी सृजनशीलता कहलाती है |लेकिन सवाल उठता है कि आखिर सर्जना के लिए कैसी अनुभूति चाहिये ?इसका सब से श्रेष्ठ जवाब श्री मती आशा सक्सेना ने "अनकहा सच "में बेहतर तरीके से दिया है |अपने ६९ बे वसंत पर जीवन की अनुभूतियाँ ,भावों की अभिव्यक्ति की छंद मुक्त भेट "अनकहा सच "में दी है |कहा जाए तो  कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी इस छंद मुक्त उपहार में प्रेम ,चिंतन, पर्यावरण ,प्रकृति ,धर्म ,आध्यात्म ,आदि सभी कुछ समाया है |इनके धैर्य ,साहस और ऊर्जा की जितनी प्रशंसा की जाए कम है |इस उम्र में एक जिम्मेदार नारी के सारे कर्तव्य पूर्ण करने के बाद इस प्रकार की काव्य रचना काबिले तारीफ है |
जीवन रूपी रंग मंच पर सब कुछ अभिनय करने के बाद भी कुछ अनकहा सच रह ही जाता है |कवियत्री ने अपना अनकहा सच कुछ इस प्रकार व्यक्त किया है -
दो बोल प्यार के बोले होते /पाते निकट अपने
नए सपने नयनों में पलते/ना रहा होता कुछ भी अनकहा |
यदि अपने मन को टटोला होता चाहत की तपिश कभी समाप्त नहीं होती -
अपनी चाहत को तुम कैसे झुटला पाओगे
मेरी चाहत की ऊंचाई ना छू पाओगे कभी 
खुद ही झुलसते जाओगे उस आग की तपिश में |
उम्र  के आखिती पड़ाव पर यदि अपनों का साथ ना हो तो मन दुखी हो जाता है |मन में कसक गहरी होती है-
होती  है कसक
जब कोई साथ नहीं देता 
उम्र के इस मोड़ पर
 नहीं होता चलना सरल 
लंबी कतार उलझनों की 
पार पाना नहीं सहज |
अपने अतीत को कोई भला भुला पाया है अतीत पर यह देखिये -
जाने कहाँ खो गया 
दूर हो गया बहुत 
जब तक लौट कर आएगा 
बहुत देर होजाएगी 
ना पहचान पाएगा मुझे कैसे |
'प्रतिमा सौंदर्य की ' कविता महाप्राण सूर्य कान्त त्रिपाठी की कविता "वह तोडती पत्थर "की याद ताजा कर देती है |  एक मजदूर स्त्री के प्रति सौन्दर्यानुभूति भाव को बखूबी प्रकट किया है -
प्रातः से संध्या तक वह तोड़ती पत्थर 
भरी धूप में भी नहीं रुकती
गति उसके हाथों की |
जीवन की क्षण भंगुरता उन्हें "सूखी डाली "में दिखाई देती है -
एक दिन काटी जाएगी 
उसकी जीवन लीला 
हो जाएगी समाप्त
सोचती हूँ और कहानी क्या होगी 
इस क्षणभंगुर जीवन की  ?
मैं कुछ लिखना चाहती हूँ कविता अनकहा सच की आत्मा है |कहाजाए तो कुछ अतिशयोक्ति नहीं होगी -
अब मैं  लिखना चाहती हूँ 
आने वाली पीढ़ी के लिए 
मैं क्रान्तिकारी  तो नहीं
 पर सम्यक क्रान्ति चाहती हूँ
हूँ एक बुद्धिजीवी 
चाहती हूँ प्रगति देश की 
"एक  झलक "कविता हमारे देश की आत्मीन्य्ता ,प्रेम और एकता की ओअर इशारा करती है -
इतना प्यार तुम्हें मिलेगा 
डूब जाओगे अपनेपन में 
गर्व करोगे अतिथि हो कर 
और जब बापिस जाओगे 
फिर से लौटना चाहोगे 
बार बार इस देश में |
मृत्यु एक शाश्वत सत्य है -जो जन्मा है मृत्यु को अवश्य प्राप्त होता है -
होती अजर अमर आत्मा 
है स्वतंत्र जीवन उसका 
नष्ट कभी नहीं होता
शरीर नश्वर है 
जन्म है प्रारम्भ 
मृत्यु है अंत उसका |
"कुछ ना कुछ सीख देती है"रचना जीवन में उत्साह -ऊर्जा का संचार करने वाली आशा वादी रचना है -
सूरज  की प्रथम किरण 
भरती जीवन ऊर्जा से
कल कल बहता जल
सिखाता सतत आगे बढ़ना |
प्रत्येक  व्यक्ति का जीवन एक डायरी की तरह है  जिसमें अंकित होती हैं सुख -दुःख ,यादों की खट्टी मीठी बातें 
डायरी का हर पन्ना कोई मिटा नहीं सकता क्यों कि -
पेन्सिल से जो भी लिखा था 
रबर से मिट भी गया 
पर मन के पन्नों पर जो अंकित
उसे मिटाऊँ कैसे ?
प्रेम से ही दुनिया चलती है सबसे अच्छा प्रेम वही है जिसमें त्यागहै ,
विश्वास है ,समर्पण है |"प्रेम  ही जीवन है "में शायद कवियित्री यही कहना चाहती हैं -
इधर उधर भटकते हो 
सुकून कहाँ से पाओगे ? 
होता जीवन क्षण भंगुर
 बिना प्रेम अधूरा है |
श्री मती आशा लता सक्सेना को उनके स्वान्तःसुखाय -भाव समर्पण के लिए साधुवाद |"अनकहा सच "की एक खास विशेषता जो मैं कहना चाहूँगा कि इस काव्य संकलन की सारी कवितायेँ सरल,सरस ,और प्रवाहमय हैं |कविताओं में व्यर्थ के रूपक गढ़ने की कोशिश नहीं की गयी है |लयात्मकता कविता को बार बार पद्गने को बाध्य 
करती है| पुनःसरस ,पठनीय ,प्रवाहमय काव्य संकलन के लिए हार्दिक बधाई |समग्र रूप से आपकी कवितायेँ मन को प्रभावित करती हैं |










01 अप्रैल, 2012

झीना आवरण


वे व्यस्त नजर आते 
जीवन की आपाधापी मे 
अभ्यस्त  नजर आते 
मनोभाव छिपाने में 
आवरण से ढके 
सत्य स्वीकारते नहीं 
झूट हजारों के
सत्य स्वीकारते नहीं
हर वार से बचना चाहते
ढाल साथ रखते
व्यंग वाणों से बचने के लिए
सीधे बने रहने के लिए
यह तक भूल जाते
है आवरण बहुत झीना
जाने कब हट जाए
हवा के किसी  झोंके से
कितना क्या प्रभाव होगा
जब बेनकाब चेहरा होगा
सोचना नहीं चाहते
बस यूं  ही जिये जाते
अनावृत होते ही
जो कुछ भी दिखाई देगा
होगी फिर जो प्रतिक्रया
वह कैसे सहन होगी
है वर्तमान की सारी महिमा
कल को किसने देखा है
बस यही है अवधारणा
मनोभाव छिपाने की |


आशा

30 मार्च, 2012

विशिष्ट आमंत्रण

आप को यह सूचित करते हुए मुझे बहुत हर्ष हो रहा है कि  कल  शनीवार दिनांक ३१.३.२०१२ को अपरान्ह ४.३० बजे होटल विक्रमादित्य, रिंग रोड चौराहा, नानाखेड़ा उज्जैन में मेरे कविता संग्रह "अनकहा सच " का विमोचन है,
इस अवसर पर आप सब की उपस्थिति एवं शुभकामनाएं विशेष रूप से अपेक्षित हैं |
कृपया पधार कर समारोह की शोभा बढ़ायें|
आशा सक्सेना

27 मार्च, 2012

बड़ा दिल

तंग दिल हो क्यूँ रहना 
होना चाहिये हृदय बड़ा
कहना है सरल पर
है कठिन कितना
यह दंश सहना |
कहने से कोशिश भी की 
विस्तार किया 
और बड़ा किया 
बड़ा दिल बड़ी बातें 
रह गए सिमट
कर कोने में
 कुछ कष्ट हुआ
जो बढ़ने लगा
 गहराई तक पहुँच गया
तुरत फुरत 
डाक्टर तक पहुँचे 
शल्य चिकित्सा की सलाह ने 
आई .सी.यू.तक पहुँचा दिया 
ढेरों  कष्टों  में दबे 
सहम गये
जब घर को प्रस्थान किया 
सारी जेबें खाली थीं 
पुन:यही विचार आया 
बड़े  दिल का क्या फ़ायदा 
जिसने अस्पताल पहुँचा दिया |
 
 
आशा
 




25 मार्च, 2012

प्रारब्ध

जगत एक मैदान खेल का 
हार जीत होती रहती 
जीतते जीतते कभी 
पराजय का मुंह देखते 
विपरीत स्थिति में कभी होते 
विजय का जश्न मनाते |
राजा को रंक होते देखा 
रंक कभी राजा होता 
विधि का विधान सुनिश्चित होता 
छूता कोई व्योम   की ऊंचाई 
किसी  के हाथ असफलता आई |
प्रयत्न है सफलता की कुंजी 
पर मिलेगा कितना
  होता सब  पूर्व नियोजित 
उसी ओर खिंचता  जाता
प्रारब्ध उसे जहां ले जाता 
कठपुतली सा नाचता 
भाग्य नचाने वाला होता
हो जाती बुद्धि भी वैसी 
जैसा ऊपर वाला चाहता|
कभी जीत का साथ देता 
कभी हार  अनुभव करवाता 
मिटाए नहीं मिटतीं 
लकीरें हाथ की
श्वासों की गति तीव्र होती 
एकाएक धीमी हो जाती 
कभी  थम भी जाती
जन्म से मृत्यु तक \
सब  पूर्व नियोजित होता 
हर सांस का हिसाब होता
उसका लेखा जोखा होता
शायद यही प्रारब्ध होता |
आशा






22 मार्च, 2012

परोपकार करते करते

रात अंधेरी गहराता तम
 सांय सांय करती हवा 
सन्नाटे में सुनाई देती 
भूले भटके आवाज़ कोइ 
अंधकार  में उभरती 
निंद्रारत लोगों में कुछ को
 चोंकाती विचलित कर जाती 
तभी हुआ एक दीप प्रज्वलित 
तम सारा हरने को 
मन में दबी आग को
 हवा देने को 
लिए  आस हृदय में 
रहा व्यस्त परोपकार में
जानता है जीवन क्षणभंगुर 
पर सोचता रहता अनवरत
जब सुबह होगी 
आवश्यकता उसकी न होगी 
यदि कार्य अधूरा छूटा भी
एक नया दीप जन्म लेगा 
प्रज्वलित होगा 
शेष कार्य पूर्ण करेगा 
सुखद भविष्य की
 कल्पना में खोया 
आधी  रात बाद सोया 
एकाएक लौ तीव्र हुई 
कम्पित  हुई 
इह लीला समाप्त हो गयी 
परम ज्योति में विलीन हो गयी |

आशा






19 मार्च, 2012

जाना है चले जाना

वह राह दिखाई देती है 
जाने से किसने रोका है 
यह प्यार है कोइ सौदा नहीं
जाना है चले जाना 
पर लौट कर न आना 
अच्छा नहीं लगता 
हर बात दोहराना 
बेसिरपैर की बातों को 
दूर तक ले जाना 
कटुता  बढती जाएगी 
कभी कम न हो पाएगी 
साथ साथ  रहते रहते 
यदि  कम भी हुई तो क्या
जाने कब सर उठाएगी 
उठे हुए सवालों का 
सुलझाना इतना सरल नहीं 
जब कोइ समानता नहीं 
क्या लाभ लोक दिखावे का 
केवल नाम के लिए 
ऐसा रिश्ता ढोने का 
है  रीत जग की यही 
जो जैसा है बदल नहीं सकता
स्वीकार  करे  या न करे 
यह खुद पर निर्भर करता है
दो प्यार करने वालों का
हश्र यही  होता है |
आशा




17 मार्च, 2012

रिश्ते कठिन पहेली से

घर बनाया
जोड़े तिनके तिनके
हमराज खोजा
 सोचते सोचते
रिश्ते जुड़े
कुछ खून के
कुछ बनाए हुए
उन्ही में खोते गए
खुद को भूल के
पर आज लगते
सब खोखले रिश्ते
ठेस पहुंचाते
कई सतही रिश्ते
जब पास होते
जला करते
दूर होते ही
शोशा  उछालते
कटुता भर जाते मन में
कभी जज्बाती
दुखी कभी  कर जाते रिश्ते
होते कुछ कपूर से
तुरत जल जाते
तरल हुए बिना ही
बस अहसास छोड़ जाते
अपना होने का
रिश्ते तो रिश्ते ही हैं
क्या सतही क्या गहरे
अलग अलग रंग लिए
 कितनी दूर
कितने करीब
रिश्ते कठिन पहेली से |
आशा










14 मार्च, 2012

रंग अमन चैन का

इन्द्रधनुषी  छटा बिखरी
प्रकृति के हर कौने में
विविध रंगों में रंगी
प्रकृति नटी स्वप्नों में
सतरंगी चूनर पहन
विचरण करती मधुवन में
सारे रंग सिमटने लगे 
एक अनोखे रंग में
शुभ्र चन्द्र की धवल चांदनी
बिखरी जल थल और नभ में
धवल हुआ अम्बर
लिपटी अवनी श्वेत आवरण में
ढकी बर्फ से पर्वत माला
श्वेत दिखी जल की धारा
मुखरित शान्ति का भाव हुआ
एक अद्भुद अनुभव हुआ
देखे श्वेत कपोत गगन में
देते सन्देश शान्ति का
सदभाव के प्रतीक वे
सन्देश वाहक अमन चैन के
छोड़ कर संकीर्णता
दृष्टि विहंगम जब डाली
तभी दुनिया देखी रंगों की
है हरा रंग हरियाली का
दुनिया में खुशहाली का
लाल रंग प्रेम का ऐसा
 लग जाए तो  छूटे ना
केशरिया रंग शौर्य  का
समर क्षेत्र की आवश्यकता
काले रंग से भय लगता
अन्धकार में कुछ न दीखता
श्वेत रंग अमन चैन का
इसमें समाहित सभी रंग
सभी को आत्मसात करता
है नायाब तरीका भाईचारे का
आपस में हिलमिल रहने का |
आशा

12 मार्च, 2012

बहुत कुछ बाकी है


इस दुनिया में क्या रखा है
जीने के लिए 
रमे रहने के लिए
 अपनी दुनिया ही काफी है 
 बड़ी हस्ती ना भी हुए तो क्या
सर छिपाने के लिए
छोटी सी छत ही काफी है
जो सुकून  मिलता है यहाँ
शायद ही कहीं मिल पाए
बहुत अनुभव नहीं तो क्या
विश्वास की नीव ही काफी है
सीखा है बहुत कुछ
 दुनिया की दुधारी तलवार से
हुए दूर दुनिया से
सिमटे अपनी दुनिया में
उसे अपने में समेटने की
लगन ही काफी है
यहाँ जो खुशी मिलाती है
बांटने से भी कम नहीं होती
प्यार की तकरार की
छुअन अभी बाकी है
जिंदगी के कई रंग घुले यहाँ
 डूबे तभी जान पाए
गहरा है रंग यहाँ का
छूटना बहुत मुश्किल
  यहाँ  अहसास अपनेपन का
है इतना गहरा
आगे कुछ नहीं दीखता
बस यही काफी है
इस दुनिया में जीने के लिए
अभी बहुत कुछ बाकी है |
आशा









09 मार्च, 2012

हूँ अधूरी तुम्हारे बिना



आज मैं मैं न  होती 
यदि तुम्हारा   साथ ना पाती
थी चाहत शिखर तक पहुँचने की
कदम भी बढाए
पर मंजिल  दूर बहुत |
आपसी सहयोग बिना
कुछ भी नहीं संभव
होते  पूरक एक दूसरे के
महिला और पुरुष |
हर सफल पुरुष के पीछे
 होता हाथ महिला का
महिला की प्रगति भी  असंभव
पुरुष के  सहयोग बिना |
जीवन की डगर
कठिन बहुत
चलते ही खो जाते उसी में
प्रतिभाएं सुप्त हो जातीं
 सफर तय करने  में  
पर तुम्हारा हाथ थाम
पहचाना स्वयं को
अपनी कर्मठता को
 सृजनशीलता को
 नए आयाम खोजे
समस्त अवरोध पार करने को   |
बंधन यदि हो कोइ
तब वह जीवन क्या
आज तुम्हारे सहयोग ने
दृढ संकल्प  बनाया मुझे
तभी कुछ कर पाई
हूँ अधूरी  तुम्हारे बिना |
आशा




07 मार्च, 2012

देखी एक समानता

नेता है आज का
स्वभाव भी बड़ा अनोखा
कभी हारता कभी जीतता
वर्चस्व की लड़ाई में
फिर भी कोइ
 शिकन न दिखती चेहरे पर
ना ही ग्लानि मन में
हार का मुंह देख कर |
देखी एक समानता
अभिनेता और  नेता में
अपने अपने चरित्र में
दौनों के खो जाने की
फिर भी एक विसंगति
दिखती चरित्र को जीने में |
अभिनेता खो जाता चरित्र में
मन से वही पात्र जीता
सजीव उसे बना कर रहता
पर नेता में कुछ न बदलता
ना ही  चिंता ना स्पंदित
था जैसा वही बना रहता
कोइ जीते कोइ हारे
फर्क उसे नहीं पडता
रहता हरदम  व्यस्त
अपना घर भरने में |
आशा


05 मार्च, 2012

चंद अल्फाज़ चाहिए

चंद अल्फाज़ चाहिए 
हालेदिल बयां करने को
है तलाश सुर की 
हृदय को टटोलने को
साजिन्दे तो मिल ही जाएगे 
संगत के लिए 
पैर भी थिरकने लगेंगे 
धुन पर संगीत के 
पर खोजती हूँ वह कौना 
एक  ऐसे मन का 
जहां कुछ देर ठहर पाऊं 
बातें अपने दिल की 
सांझा कर पाऊं
चुने हुए अल्फाजों में 
कुछ उसकी सुनूं 
कुछ अपनी कहूँ 
साँसें बोझिल ना रह जाएँ 
अपना मन हल्का कर पाऊं 
उसकी पनाह नें |
आशा

03 मार्च, 2012

होली के रंग



होली पर दोहे 
गहरे रंगों में रंगी ,भीगा सारा अंग |
एक रंग ऐसा लगा ,छोड़ ना पाई संग ||

विजया सर चढ़ बोली ,तन मन हुआ अनंग |
चंग संग थिरके कदम ,उठने लगी तरंग ||

कह डाली बात मन की, ओ मेरे ढोलना |
तेरे प्यार में रंगी ,यह भेद न खोलना ||
चल खेलें फाग

रंग रसिया चल खेलें फाग
होली का रंग जमालें
लठ्ठ मार होली खेलें
हो सके तो  खुद को बचाले |
रसिया के रंग में डूबी
वह खेल रही होली
मुखड़े पर जब लगा  गुलाल
वह एक शब्द ना बोली|
मौन स्वीकृति जान उसने
अपने पास बुलाया
अनुराग  भरा गुलाल लगा
उसे अपने गले लगाया|
दूर हुए गिले शिकवे
वह प्रेम रंग में डूबी
अपने प्रियतम के संग
आज  खेल रही होली |
आशा





01 मार्च, 2012

बहुत देर हो चुकी थी

खेलते बच्चे मेरे घर के सामने
करते शरारत शोर मचाते
पर भोले मन के
उनमें ही ईश्वर दीखता
बड़े नादाँ नजर आते
दिल के करीब आते जाते
निगाह पड़ी पालकों पर
दिखे उदास थके हारे
हर दम रहते व्यस्त
बच्चों के लालनपालन में
रहते इतनी उलझनों में
खुद को भी समय न दे पाते
फिर देखा एक और सत्य
बड़े होते ही उड़ने लगते
भूलते जाते बड़ों को
उनके प्रति कर्तव्यों को
कई बार विचार किया
फिर निश्चय किया
कोइ संतान ना चाहेंगे
बस यूँ ही खुश रह लेंगे
पर आज मैं और वह
जी रहे नीरस जीवन
ना चहलपहल ना रौनक घर में
आसपास फैली उदासी
अब लग रहा निर्णय गलत
जो पहले हमने लिया था
बच्चे तो हैं घर की रौनक
है आवश्यक उनका भी होना
घर है उनके बिना अधूरा
पर जब तक
आवश्यकता समझी
बहुत देर हो चुकी थी |
\आशा



27 फ़रवरी, 2012

देखे विहग व्योम में


देखे विहग व्योम में उड़ते
लहराती रेखा से
थे अनुशासित इतने
ज़रा न इधर उधर होते
प्रथम दिवस का  दृश्य
 हुआ साकार फिर से
 यह क्रम  रोज सुबह रहता
होते ही प्रातः बढ़ते कदम
खुले आकाश के नीचे
यही मंजर देखने के लिए 
अब तो नियम सा हो गया
उन्हें देखने का
ना होता कोइ दिग्भ्रमित
ना ही  बाहर  रेखा से
अग्र पंक्ति का पीछा करते
कतार बद्ध आगे बढ़ते
हुआ विस्मय यह देख
समय तक निश्चित उनका
मोल समय का जानते
उसे साध कर चलते
गति थी एकसी सबकी
लगता था क्रम तक निश्चित
शायद उनसे ही सीखा हो
कदम ताल करना
अग्र पंक्ति से कदम मिला कर
दूर तक जाना
हो स्वअनुशासित परेड में 
एक ताल पर चलना |
आशा

25 फ़रवरी, 2012

भूली सारे राग रंग


भूली सारे राग रंग 
पड़ते  ही धरा पर कदम
स्वप्न सुनहरा ध्वस्त हो गया
सच्चाई से होते ही वास्ता
 दिन पहले रंगीन
 हुआ करते थे
भरते विविध रंग जीवन में
थी राजकुमारी सपनों की
खोई रहती थी उनमें
पर अब ऐसा कुछ भी नहीं
जो पहले हुआ करता था
है एक जर्जर मकान
और आवरण बदहाली का
देख इसे हताशा जन्मीं
घुली कटुता जीवन में
फिर साहस ने साथ दिया
और कूद पडी अग्नी  में
सत्य की परिक्षा के लिए
दिन रात व्यस्त रहती
कब दिन बीतता कब रात होती
वह जान नहीं पाती
 अब है समक्ष उसके
जर्जर मकान और जलता दिया
बाती जिसकी घटती जाती
कसमसाती बुझने के लिए
गहन विचार गहरी पीड़ा लिए
थकी हारी वह सोचती
कहीं कहानी दीपक की
है उसी की तो नहीं |
आशा





22 फ़रवरी, 2012

ऋतु फागुन की


आई मदमाती ऋतु
फागुन की
चली फागुनी बयार
वृक्षों ने किया श्रृंगार
हरे पीले वसन पहन
झूमते बयार संग
थाप पर चांग की
थिरकते कदम
फाग की मधुर धुन
कानों में घुलती जाए
पिचकारी में रंग भर
लिए साथ अबीर  गुलाल
रंग खेलते बालवृंद
उत्साह और खुशी
छलक छलक जाए
प्रियतम के रंग में डूबी
भीगी चूनर गौरी की
गोरे गालों की लाली
कुछ कहती नजर आए
उसके नयनों की भाषा
कानों में झुमकों की हाला
भीगा तन मन
वह विभोर हुई जाए |
आशा