19 फ़रवरी, 2012

है कैसी दुविधा


जाने का जब मन हुआ
मुंह उठा कर चल दिया
ठोकर लगी सम्हल न पाया
माँ की सीख याद आई
नीचे देख सदा चलना
निगाहें नीची कर चला
आगे देख नहीं पाया
टकराते टकराते बचा
पर चालाक ने शोर मचाया
"है अंधा क्या ?
जो आगे भी देख नहीं पाता "
किसी ने मुझे उठाया
और एक उपदेश थमाया
देख कर दाएँ बाएँ
कदम बढ़ाना चाहिए
सड़क पर चलने के लिए
सतर्क होना चाहिए
क्रोध मुझे बहुत आया
स्वयम पर
और आज की दुनिया पर
वर्जनाएं सहते सहते
मन मेरा फटने लगा
पैबंद भी कब तक लगाता
वही बातें सोच कर
मन विचलित होता जाता
जो चाहता हो न पाता
जीना दूभर हो गया
आज के इस दौर में
खुद में रमूं या जग की सुनूं
है कैसी दुविधा
जिससे उभर नहीं पाता |
आशा


16 फ़रवरी, 2012

दोषी कौन


अर्श से ज़मीन तक
वजूद है तेरा
होता सुखद अहसास
सानिध्य पा तेरा
आता निखार सृष्टि में
देख पावन रूप तेरा
स्वच्छ सुन्दर छवि तेरी
दे जाती खुशी
तुझ में आती विकृति
कर जाती दुखी
दिनों दिन तेरी बदहाली
बढ़ने लगी जब से
कारण खोजा तब पाया
मनुष्य के सिवाय
कोइ और नहीं
है वही सबसे बड़ा
कारक कारण
और खलनायक
तेरी बदहाली का
स्वार्थ सिद्धि के लिए
गिरा इस हद तक
 आगा पीछा 
सोच न पाया
निजी स्वार्थ सबसे ऊपर
जल हो या थल
या विष बुझा वायु मंडल
कारक सब का 
वही दीखता
स्वार्थ से ऊपर उठ कर
जब वही जागृत होगा
 संरक्षण तेरा कर पाएगा
मुक्ति प्रदूषण से मिलेगी 
प्रसन्नता  छलकने लगेगी
तुझ में नई चेतना पा कर |
आशा

13 फ़रवरी, 2012

अब अनजान नहीं

 खिली सुबह की धुप सी
बाली उम्र की रूपसी
डूबी प्यार में ऐसी
वह चंचला झुकती गयी
फूलों से लदी डाली सी
दुनिया से बेखबर
लिपटी आगोश में
जाने कब डाली टूटी
धराशायी   हुई
जब चर्चे आम हुए 
गलती का अहसास हुआ
पश्च्याताप में डूबी
शर्म से सिमटी छुईमुई सी
जब समय पा  दुःख भूली
 आगे बढ़ कर किसी ने
दिया सहारा हौले से
लाल गुलाब का फूल दे
मनोभाव पढ़ना चाहे  
पहले सहमी सकुचाई
फिर धीमें से मुस्काई
हाथ थाम बढ़ाए कदम
एक नई राह पर
  अजनवी राह चुनी 
 गहन आत्मविश्वास से
 वह अब अनजान नहीं 
जीवन की सच्चाई से
भरम उसका टूट चुका है 
स्वप्नों की दुनिया से |
आशा 



11 फ़रवरी, 2012

कह जाती कुछ और कहानी

निराला संसार कल्पना का
असीमित भण्डार उसका
पर घिरा बादलों से
कुछ स्पष्ट नहीं होता |
जो दिखाई दे  वह होता नहीं
जो होता वह दीखता नहीं
बादलों की ओट से
हल्की सी झलक दिखा जाता
सदा अपूर्ण ही रहता |
नित्य नया संसार बनता
कभी सिमटता कभी बिखरता
उस पर रह न पाता अंकुश
बंधन में पहले भी न था
आज भी है   दूर उससे
कल क्या हो पता नहीं |
फिर भी यही सोच रहता
अंत होगा क्या इसका
है आस तभी तक
जब तक उल्टी गिनती शुरू न हुई
बाद में क्या हश्र हो
लौट कर किसीने बताया नहीं
पर है एक विशिष्ट पहलू
रंगीनी इसकी  दे जाती सुकून
कालिमा जब दिखती
छीन ले जाती खुशी |
इसकी अपनी दुनिया में
 जब छा जाती गहन उदासी
कह जाती कुछ और कहानी |
आशा




08 फ़रवरी, 2012

क्षणिकाएं

(१)
जज्बा प्रेम का 
जुनून  उसे पाने का 
भय  उसे  खोने का
कह जाता बहुत कुछ 
उसके  होने का |
(२)
सारी  दुनिया एक तरफ 
प्रेम  अकेला एक तरफ
फिर भी सबसे शक्तिशाली
दुनिया उसके आगे हारी |
(३)
प्रेम  की है परिभाषा 
 आज के सन्दर्भ में
भोगी ,भोग्या और भोग
बस यही है प्रेम रोग |
(४) 
सुंदरता  का पैमाना
प्रेम ने नहीं माना 
जो  केवल मन भाया 
अपना उसे बना पाया |
आशा 








07 फ़रवरी, 2012

साथ चला साये सा

है मृत्यु कितनी दुखदाई 
अहसास  उसका इससे भी गहरा 
उर  में छिपे ग़मों को  
बाहर  आने नहीं देता |
पहचान  हुई जब से 
 साथ नहीं छोड़ा 
  साथ  चला साये सा 
लगने   लगी रिक्तता उसके बिना |
है  दुनिया बाजार ग़मो का 
जगह  जगह वे बिकते 
कई  होते खरीदार 
विक्रेता  बेच कर चल देते |
कहाँ  कहाँ नहीं भटका
अशांत मन लिए
काँटों  के अलावा कुछ न मिला
सीना  छलनी हुआ 
तब  उन्हीं ने साथ  दिया |
यदि है  यही दस्तूर  दुनिया का
हम भी उनका साथ न छोड़ेंगे 
छिपा  कर दिल में उन्हें  
साथ उन्हीं  के जी लेंगे |
आशा 




















05 फ़रवरी, 2012

प्रतीक्षा

                                                                                                 
ह्रदय  पटल पर
अंकित शब्द 
जो  कभी सुने थे 
यादों  में ऐसे बसे 
कि  भूल नहीं पाता
कहाँ कहाँ नहीं भटका 
खोज  में उसकी 
मिलते  ही 
क्यूँ न बाँध लूं 
उसे  स्नेह पाश में 
जब  भी किसी
गली तक पहुंचा
मार्ग अवरुद्ध मिला
जब उसे नहीं पाया 
हारा  थका लौट आया 
आशा  का दामन न छोड़ा
लक्ष्य  पर अवधान रहा
आगे क्या करना है
बस यही मन में रहा 
हो  यदि दृढ़ इच्छा शक्ति
होता कुछ भी नहींअसंभव
फिर भी यदि
वह नहीं मिल पाई
आस का दीपक जला 
चिर  संध्या तक 
प्रतीक्षा करूँगा
आशा














03 फ़रवरी, 2012

पहाड़ उसे बुला रहे

अश्रुपूरित नयनों से
वह देखती अनवरत
दूर उस पहाड़ी को
जो ख्वाव गाह रही उसकी
आज है वीरान
कोहरे की चादर में लिपटी
किसी उदास विरहनी सी
वहाँ खेलता बचपन
स्वप्नों में डूबा यौवन
सजता रूप
किसी के इन्तजार में
है अजीब सी रिक्तता
वहाँ के कण कण में
गहरी उदासी छाई है
उन लोगों में
भय दहशतगर्दों का
विचलित कर जाता
वे चौंक चौक जाते
आताताई हमलों से
कई बार धोखा खाया
पर प्रेम बांटना ना भूले
जो भी द्वारे आए
उसे ही प्रभु जान लेते
पहाड़ उसे बुला रहे
याद वहां की आते ही
वह खिचती जा रही
बंधी प्रीत की डोर में |
आशा


























31 जनवरी, 2012

भटकाव

जपते माला गुरु बनाते
नीति धर्म की बातें करते
पर आत्मसात न कर पाते
सब से वंचित रह जाते |
संचित पूंजी भी चुक जाती
व्यर्थ के आडम्बरों में
बातें यूँही रह जातीं
पुस्तकों के पन्नों में |
है ज्ञान अधूरा ,ध्यान अधूरा
जीवन संग्राम अधूरा
फिर भी सचेत न हो पाते
इधर उधर भटकते रहते
कस्तूरी मृग से वन में
अस्थिर मन की चंचलता
चोला आधुनिकता का
अवधान केंद्रित नहीं रहता
रह जाते दूर सभी से
खाली हाथ विदा लेते
इस नश्वर संसार से |
आशा

















28 जनवरी, 2012

स्वर नहीं मिलते

कुछ शब्दों को
स्वर नहीं मिलते
यदि भूले से मिल भी गए
कहीं पनाह नहीं पाते |
वे होते मुखर एकांत पा
पर होने लगते गुम
समक्ष सबके |
ऐसे शब्दों का लाभ क्या
हैं दूर जो वास्तविक धरा से
हर पल घुमड़ते मन के अंदर
पर साथ नहीं देते समय पर |
स्वप्नों में होते साकार
पर अभिव्यक्ति से कतराते
शब्द तो वही होते
पर रंग बदलते रहते
वे जिस रंग में रम जाते
वहीँ ठिठक कर रह जाते
स्वर कहीं गुम हो जाते |
आशा






















26 जनवरी, 2012

बेटी

बेटी अजन्मी सोच रही 
क्यूँ  उदास माँ दिखती है 
जब  भी कुछ जानना चाहूँ 
यूँ  ही टाल देती है|
रह ना पाई कुलबुलाई 
समय देख प्रश्न  दागा 
क्या  तुम मुझे नहीं चाहतीं 
मेरे  आने में है दोष क्या 
क्यूँ  खुश दिखाई नहीं देतीं ?
 माँ  धीमे से मुस्कुराई 
पर  उदासी न छिपा पाई 
बेटी  तू यह नहीं जानती 
सब  की चाहत है बेटा 
जब  तेरा आगमन होगा 
सब  से मोर्चा   लेना होगा 
यही  बात चिंतित करती 
मन  में उदासी भरती |
जल्दी  से ये दिन बीते 
खिली  रुपहली धूप 
आज  मेरे आँगन में 
गूंजी  तेरी किलकारी 
इस  सूने उपवन में
मिली  खुशी अनूप 
तुझे  पा लेने में |
देखा  सोच बदलता मैनें 
अपने  ही घर में |
कितना  सुखमय है जीवन 
आज  में जान पाई 
रिश्तों  की गहराई 
यहीं  नजर आई |
तेरी  नन्हीं बाहों की उष्मा
और प्यार भरी सुन्दर अँखियाँ 
स्वर्ग कहीं से ले  आईं 
मेरे  मुरझाए जीवन में |
आशा




































24 जनवरी, 2012

अपेक्षा

हूँ स्वतंत्र ,मेरा मन स्वतंत्र
नहीं स्वीकार कोइ बंधन
जहां चाहता वहीं पहुंचता
उन्मुक्त भाव से जीता
नियंत्रण ना कोइ उस पर
निर्वाध गति से सोचता
जब मन स्वतंत्र
ना ही नियंत्रण सोच पर
फिर अभिव्यक्ति पर ही रोक क्यूं ?
जब भावना का ज्वार उठता
अपना पक्ष समक्ष रखता
तब वर्जना सहनी पडती
अभिव्यक्ति परतंत्र लगती |
कानूनन अधिकार मिला
अपने विचार व्यक्त करने का
कलम उठाई लिखना चाहा
कारागार नजर आया |
अब सोच रहा
है यह किसी स्वतंत्रता
अधिकार तो मिलते नहीं
कर्तव्य की है अपेक्षा |
आशा








19 जनवरी, 2012

आशा अभी बाकी है



                                                                            
फैली उदासी आसपास 
झरते  आंसू अविराम 
अफसोस है कुछ खोने का 
अनचाहा घटित होने का |
आवेग जब कम होता 
वह सोचता कुछ खोजता 
एकटक देखता रहता 
दूर  कहीं शून्य में |
हो  हताश कुछ बुदबुदाता 
जैसे ही कुछ याद आता 
निगाहें उठा फिर ताकता
उसी अनंत में |
छलकते आंसुओं को 
रोकने की चेष्ठा कर 
धुंधलाई आँखों से झांकता 
फिर से परम शून्य में 
जाने कितने अस्तित्व 
समा गए अनंत में 
फिर भी खोजता अनवरत 
गंभीर सोच जाग्रत होता 
अशांत मन में |
जो चाहा पूर्ण न हो पाया 
प्रयत्न अधूरा रहा फिर भी 
है सफलता से दूर भी 
पर  आशा  अभी बाकी है |
आशा 





15 जनवरी, 2012

क्यूँ न वर्तमान में जी लें

बैठे आमने सामने देखते
 बनती मिटती कभी सिमटतीं 
आती जाती लकीरें चेहरों पर
मुस्कान  ठहरती कुछ क्षण को 
फिर कहीं तिरोहित हो जाती 
भाव भंगिमा के परिवर्तन
परिलक्षित करते अंतर मन |
वे सब भी क्षणिक लगते 
होते हवा के झोंके से 
जो आए ले जाए 
उन  लम्हों की नजाकत को 
लगते कभी  स्वप्नों से 
प्रायः  जो सत्य नहीं होते 
कुछ पल ठहर विलुप्त होते |
भिन्न नहीं  है दरिया भी 
बहता जल उठाती लहरें 
टकरा कर चट्टानों से 
मार्ग ही बदल देते 
अवरोध  को नगण्य मान 
बहती जाती अविराम 
पर  चिंतित, कब जल सूख जाए 
अस्तित्व  ही ना गुम हो जाए 
यही  सोच पल भर मुस्काते 
सुख दुःख तो आते जाते
है जीवन क्षणभंगुर 
क्यूँ न वर्त्तमान में जी लें |
आशा 









 



12 जनवरी, 2012

मृग तृष्णा

जल देख आकृष्ट हुआ 
घंटों  बैठ अपलक निहारा 
आसपास  था जल ही जल
प्यास जगी बढ़ने लगी |
खारा पानी इतना कि 
बूँद  बूँद जल को तरसा  
गला  तर न कर पाया 
प्यासा था प्यासा ही रहा |
तेरा प्यार भी सागर जल सा 
मन  ने जिसे पाना चाहा 
पर  जब भी चाहत उभरी 
 खारा जल ही मिल पाया |
रही  मन की प्यास अधूरी 
मृग  तृष्णा सी बढती गयी 
जिस जल के पीछे भागा 
मृग  मारीचिका ही नजर आई |
सागर  सी गहराई प्यार की
आस अधूरी दीदार की 
वर्षों बीत गए
नजरें टिकाए द्वार पर|
मुश्किल से कटता हर पल
तेरी राह देखने  में
आगे  होगा क्या  नहीं जानता 
फिर  भी बाकी है अभी आस
 और प्यास तुझे पाने की |
आशा 


















10 जनवरी, 2012

गहन विचार

गहन गंभीर जटिल विचार 
बहते   जाते  सरिता जल से 
होते प्रवाह मान  इतने
रुकने का नाम नहीं लेते |
है गहराई कितनी उनमें 
नापना भी चाहते 
पर अधरों के छू किनारे 
पुनःलौट लौट आते |
कभी होते तरंगित भी 
तटबध तक तोड़ देते
मंशा रहती प्रतिशोध की 
तब किसी को नहीं सुहाते |
तभी  कोइ विस्फोट होता 
हादसों का जन्म होता 
गति बाधित तो होती 
पर पैरों की बेड़ी न बनती |
सतत अनवरत उपजते बिचार 
गति पकड़ आगे बढ़ते 
बांह समय की थाम चलते 
प्रवाहमान बने रहते |

आशा




07 जनवरी, 2012

स्याही रात की

जब गहराती स्याही रात की
बेगानी लगती कायनात भी
लगती चमक तारों की फीकी
चंद्रमा की उजास फीकी |
एक अजीब सी रिक्तता
मन में घर करती जाती
कहर बरपाती नजर आती
हर आहट तिमिर में |
सूना जीवन उदास शाम
और रात की तनहाई
करती बाध्य भटकने को
वीथियों में यादों की |
बढ़ने लगती बेचैनी
साँसें तक रुक सी जातीं
राह कोई फिर भी
नहीं सूझती अन्धकार में |
क्या कभी मुक्ति मिल पाएगी
इस गहराते तम से
सूरज की किरण झाँकेगी
बंजर धरती से जीवन में |
कभी तो रौशन हो रात
शमा के जलने से
यादों से मुक्त हो
खुली आँखों में स्वप्न सजें |
आशा



04 जनवरी, 2012

अफवाहें

उडाती अफवाहें बेमतलब 
तुमने शायद नहीं सुनीं 
जब सामने से निकलीं 
लोगों ने कुछ सोचा और |
मन ही मन कल्पना की 
कोइ सन्देश दिया होगा 
तुम मौन थीं तो क्या हुआ 
आँखों से व्यक्त किया होगा |
कुछ  मन चले छिप छिप  कर
सड़क किनारे खड़े हुए 
इशारों से बतियाते रहते 
छींटाकशी से बाज न आते |
हम तुम तो कभी भी
आपस  में रूबरू न हुए
ना कभी आँखें हुईं चार
ना ही उपजा कभी प्यार |
फिर  भी ऐसा क्यूँ ?
मनचलों बेरोजगारों की
शायद फितरत है यही
कटाक्ष  कर प्रसन्न होने  की |
मन  ही मन ग्लानी होती है
उनकी सोच कितनी छोटी है
यदि अफवाहें तुम तक पहुंची
तुम भी क्या वही सोचोगी
जो मैं सोच रहा हूँ ?
आशा






01 जनवरी, 2012

शब्द

शब्दों का दंगल आस पास 
अस्थिर करता मन कई बार 
दंगल का कैसे ध्यान धरें 
आकलन  शब्दों का कौन करे |
नहीं  सरल शब्दों को तोलना 
उन  वाणों से बच रहना
सत्य असत्य की पहिचान कर 
सही  अर्थ निकाल पाना |
कभी होता शब्द भी उदास 
देख   अपनी अवहेलना
है वह उस तारे सा 
जो टूटा खंड खंड होगया 
जाने  कहाँ विलुप्त हो गया |
उस शब्द का है महत्त्व अधिक 
जो कुछ बजन रखता हो 
जिस पर कोई अमल करे 
मूल्य  उसका समझ सके |
अनर्गल कहे गए शब्द 
बदलते  रहते शोर में 
और खो जाते भीड़ में 
सिमट जाते किसी आवरण में |
अनेक  शब्द अनेक अर्थ
कैसे ध्यान सब का रहे
हैं  अनेक तारे अर्श में
गिनने की कोशिश कौन करे |
आशा











29 दिसंबर, 2011

आने को है नया साल

आने को है नया साल 
कुछ नया लिए 
कल सुबह आए
खुशियों की सौगात लिए |
तैयारी  की स्वागत की 
जागे सारी रात 
अनोखा उत्सार जगा 
नया साल कुछ खास  लगा |
स्वप्नों के तानेबाने से 
एक नया संसार बुना 
जहां न हो भेदभाव 
हो  भाई चारा बेमिसाल |
हर ओर अमन चैन फैले 
प्रेममय सब जग लगे
तभी तो आने वाला कल 
आएगा  उज्वल भविष्य लिए |
संभावनाएं  होंगी अनेक 
लिए उत्साह हर क्षेत्र में 
है कामना आए यह साल 
समृद्धि की मशाल लिए |
आशा 







27 दिसंबर, 2011

सुगंधित बयार

है प्रेम क्या उसका अर्थ क्या
वह हृदय की है अभिव्यक्ति
या शब्दों का बुना जाल
या मन में उठा एक भूचाल |
होती आवश्यक संवेदना
आदर्श विचार और भावुकता
किसी से प्रेम के लिए
कैसे भूलें त्याग और करुना
है यह अधूरा जिन के बिना |
कुछ पाना कुछ दे देना
फिर उसी में खोए रहना
क्या यह प्यार नहीं
लगता है यह भी अपूर्ण सा
कब आए किस रूप में आए
है कठिन जान पाना |
जिसने इसे मन में सजाया
इसी में आक्रान्त डूबा
मन में छुपा यही भाव
नयनों से परिलक्षित हुआ |
रिश्तों की गहराई में
दाम्पत्य की गर्माहट में
यदि सात्विक भाव न हो
 तब सात फेरे सात वचन
साथ जीने मरने की कसम
लगने लगते सतही
या मात्र सामाजिक बंधन |
जिसके हो गए उसी में खो गए
रंग में उसी के रंगते गए
क्या यह प्यार नहीं ?
यह है बहुआयामी
और अनंत  सीमा जिसकी
यह तो है सुगन्धित बयार सा
जिसे बांधना सरल नहीं |

25 दिसंबर, 2011

सांता क्लाज


हे सांता हो तुम कौन
कहाँ से आए
बच्चों से तुम्हारा कैसा नाता
वे पूरे वर्ष राह देखते
मिलने को उत्सुक रहते |
क्या नया उपहार लाये
झोली में झांकना चाहते
बहुत प्रेम उनसे करते हो
वर्ष में बस एक ही बार
आने का सबब क्यूं न बताते |
बहुत कुछ दिया तुमने
प्यार दुलार और उपहार
सभी कुछ ला दिया तुमने
सन्देश प्रेम का दिया तुमंने |
तभी तो हर वर्ष तुम्हारा
इन्तजार सभी करते हैं
आवाज चर्च की घंटी की सुन
खुशी से झूम उठते हैं |
हैप्पी क्रिसमस ,मैरी क्रिसमस
बोल गले मिलते हैं
तुम्हारे आगमन की खुशी में
गाते नाचते झूमते झामते
केक काट खाते मिल बाँट
मन से जश्न खूब मनाते |
आशा





23 दिसंबर, 2011

अंदाज अलग जीने का

हूँ स्वप्नों की राज कुमारी

या कल्पना की लाल परी

पंख फैलाए उडाती फिरती

कभी किसी से नहीं डरी |

पास मेरे एक जादू की छड़ी

छू लेता जो भी उसे

प्रस्तर प्रतिमा बन जाता

मुझ में आत्म विशवास जगाता |

हूँ दृढ प्रतिज्ञ कर्तव्यनिष्ठ

हाथ डालती हूँ जहां

कदम चूमती सफलता वहाँ |

स्वतंत्र हो विचरण करती

छली न जाती कभी

बुराइयों से सदा लड़ी

हर मानक पर उतारी खरी |

पर दूर न रह पाई स्वप्नों से

भला लगता उनमें खोने में

यदि कोइ अधूरा रह जाता

समय लगता उसे भूलने में |

दिन हो या रात

यदि हो कल्पना साथ

होता अंदाज अलग जीने का

अपने मनोभाव बुनने का |

आशा

20 दिसंबर, 2011

सुकून

जब भी मैंने मिलना चाहा

सदा ही तुम्हें व्यस्त पाया

समाचार भी पहुंचाया

फिर भी उत्तर ना आया |

ऐसा क्या कह दिया

या की कोइ गुस्ताखी

मिल रही जिसकी सजा

हो इतने क्यूँ ख़फा |

है इन्तजार जबाव का

फैसला तुम पर छोड़ा

हैं दूरियां फिर भी

फरियाद अभी बाकी है |
यूँ न बढ़ाओ उत्सुकता

कुछ तो कम होने दो

है मन में क्या तुम्हारे

मौन छोड़ मुखरित हो जाओ |

हूँ बेचैन इतना कि

राह देखते नहीं थकता

जब खुशिया लौटेंगी

तभी सुकून मिल पाएगा |

आशा

18 दिसंबर, 2011

पाषाण या बुझा अंगार


है कैसा पाषाण सा
भावना शून्य ह्रदय लिए
ना कोइ उपमा ,अलंकार
या आसक्ति सौंदर्य के लिए |
जब भी सुनाई देती
टिकटिक घड़ी की
होता नहीं अवधान
ना ही प्रतिक्रया कोई |
है लोह ह्रदय या शोला
या बुझा हुआ अंगार
सब किरच किरच हो जाता
या भस्म हो जाता यहाँ |
है पत्थर दिल
खोया रहता अपने आप में
सिमटा रहता
ओढ़े हुए आवरण में |
ना उमंग ना कोई तरंग
लगें सभी ध्वनियाँ एकसी
हृदय में गुम हो जातीं
खो जाती जाने कहाँ |
कभी कुछ तो प्रभाव होता
पत्थर तक पिधलता है
दरक जाता है
पर है न जाने कैसा
यह संग दिल इंसान |
आशा




16 दिसंबर, 2011

कैसा अलाव कैसा जाड़ा


सर्दी का मौसम ,जलता अलाव

बैठे लोग घेरा बना कर

कोइ आता कोइ जाता

बैठा कोइ अलाव तापता |

आना जाना लगा रहता

फिर भी मोह छूट न पाता

क्यूँ कि कड़ी सर्दी से

है गहरा उसका नाता |

एक किशोर करता तैयारी

मार काम की उस पर भारी

निगाहें डालता ललचाई

पर लोभ संवरण कर तुरंत

चल देता अपने मार्ग पर |

कैसा अलाव कैसा जाड़ा

उसे अभी है दूर जाना

अब जाड़ा उसे नहीं सताता

है केवल काम से नाता |

आशा

14 दिसंबर, 2011

छुईमुई

बाग बहार सी सुन्दर कृति ,
अभिराम छवि उसकी |
निर्विकार निगाहें जिसकी ,
अदा मोहती उसकी ||
जब दृष्टि पड़ जाती उस पर ,
छुई मुई सी दिखती |
छिपी सुंदरता सादगी में,
आकृष्ट सदा करती ||
संजीदगी उसकी मन हरती,
खोई उस में रहती |
गूंगी गुडिया बन रह जाती ,
माटी की मूरत रहती ||
यदि होती चंचल चपला सी ,
स्थिर मना ना रहती |
तब ना ही आकर्षित करती ,
ना मेरी हो रहती ||
आशा


11 दिसंबर, 2011

अनूठा सौंदर्य


बांह फैलाए दूर तलक
बर्फ से ढकीं हिमगिर चोटियाँ
लगती दमकने कंचन सी
पा आदित्य की रश्मियाँ |
दुर्गम मार्ग कच्चा पक्का
चल पाना तक सुगम नहीं
लगा ऊपर हाथ बढाते ही
होगा अर्श मुठ्ठी में |
जगह जगह जल रिसाव
ऊपर से नीचे बहना उसका
ले कर झरने का रूप अनूप
कल कल मधुर ध्वनि करता |
जलधाराएं मिलती जातीं
झील कई बनती जातीं
नयनाभिराम छबी उनकी
मन वहीँ बांधे रखतीं |
कभी सर्द हवा का झोंका
झझकोरता सिहरन भरता
हल्की सी धुप दिखाई देती
फिर बादलों मैं मुंह छिपाती |
एकाएक धुंध हो गयी
दोपहर में ही शाम हो गयी
अब न दीखता जल रिसाव
ना ही झील ना घाटियाँ |
बस थे बादल ही बादल
काले बादल भूरे बादल
खाई से ऊपर आते बादल
आपस में रेस लगाते बादल
मन में जगा एक अहसास
होते हैं पैर बादलों के भी
आगे बढ़ने के लिए
आपस में होड़ रखते हैं
आगे निकलने के लिए |
आशा

10 दिसंबर, 2011

है नाम जिंदगी इसका


बोझ क्यूँ समझा है इसे
है नाम जिंदगी इसका
सोचो समझो विचार करो
फिर जीने की कोशिश करो |
यत्न व्यर्थ नहीं जाएगा
जिंदगी फूल सी होगी
जब समय साथ देगा
जीना कठिन नहीं होगा |
माना कांटे भी होंगे
साथ कई पुष्पों के
दे जाएगे कभी चुभन भी
इस कठिन डगर पर |
फिर भी ताजगी पुष्पों की
सुगंध उनके मकरंद की
साथ तुम्हारा ही देगी
तन मन भिगो देगी |
होगा हर पल यादगार
कम से कमतर होगा
कष्टों का वह अहसास
जो काँटों से मिला होगा |
सारा बोझ उतर जाएगा
छलनी नहीं होगा तन मन
कठिन नहीं होगा तब उठाना
इस फूलों भरी टोकरी को |
आशा