और खलनायक
सोच न पाया
वही दीखता
प्रसन्नता छलकने लगेगी
हूँ स्वप्नों की राज कुमारी
या कल्पना की लाल परी
पंख फैलाए उडाती फिरती
कभी किसी से नहीं डरी |
पास मेरे एक जादू की छड़ी
छू लेता जो भी उसे
प्रस्तर प्रतिमा बन जाता
मुझ में आत्म विशवास जगाता |
हूँ दृढ प्रतिज्ञ कर्तव्यनिष्ठ
हाथ डालती हूँ जहां
कदम चूमती सफलता वहाँ |
स्वतंत्र हो विचरण करती
छली न जाती कभी
बुराइयों से सदा लड़ी
हर मानक पर उतारी खरी |
पर दूर न रह पाई स्वप्नों से
भला लगता उनमें खोने में
यदि कोइ अधूरा रह जाता
समय लगता उसे भूलने में |
दिन हो या रात
यदि हो कल्पना साथ
होता अंदाज अलग जीने का
अपने मनोभाव बुनने का |
आशा
जब भी मैंने मिलना चाहा
सदा ही तुम्हें व्यस्त पाया
समाचार भी पहुंचाया
फिर भी उत्तर ना आया |
ऐसा क्या कह दिया
या की कोइ गुस्ताखी
मिल रही जिसकी सजा
हो इतने क्यूँ ख़फा |
है इन्तजार जबाव का
फैसला तुम पर छोड़ा
हैं दूरियां फिर भी
कुछ तो कम होने दो
है मन में क्या तुम्हारे
मौन छोड़ मुखरित हो जाओ |
हूँ बेचैन इतना कि
राह देखते नहीं थकता
जब खुशिया लौटेंगी
तभी सुकून मिल पाएगा |
आशा
सर्दी का मौसम ,जलता अलाव
बैठे लोग घेरा बना कर
कोइ आता कोइ जाता
बैठा कोइ अलाव तापता |
आना जाना लगा रहता
फिर भी मोह छूट न पाता
क्यूँ कि कड़ी सर्दी से
है गहरा उसका नाता |
एक किशोर करता तैयारी
मार काम की उस पर भारी
निगाहें डालता ललचाई
पर लोभ संवरण कर तुरंत
चल देता अपने मार्ग पर |
कैसा अलाव कैसा जाड़ा
उसे अभी है दूर जाना
अब जाड़ा उसे नहीं सताता
है केवल काम से नाता |
आशा
The morning breeze
Attracts me
The rising sun
Touches me
Walking zone calls me
Temptation is so high
I fly in the sky
Being soft and silky
The shining rays
Catch me
They play hide and seek
In dreams only
Alas I have awaken
And no rays are there
To play with me ।
Asha